अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है ...


1) अच्छे एवं महान् कहे जाने वाले सभी प्रयास-पुरुषार्थ प्रारम्भ में छोटे होते है।
2) अच्छे विचार मनुष्य को सफलता और जीवन देते है।
3) अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है।
4) अच्छे जीवन की एक कुँजी हैं- अपनी सर्वश्रेष्ठ योग्यता को चुनना और उसे विकसित करना।
5) अच्छे लोगों की संगत अच्छा सोचने की पक्की गारंटी है।
6) अतीत से सीखो, वर्तमान का सदुपयोग करो, भविष्य के प्रति आशावान रहो।
7) अर्जन का सदुपयोग अपने लिए नहीं ओरो कि लिए हो। इस भावना का उभार धीरे-धीरे व्यक्तित्व को उस धरातल पर लाकर खडा कर देता है, जहाँ वह अनेक लोगो को संरक्षण देने लगता है।
8) अन्धकार में भटकों को ज्ञान का प्रकाश देना ही सच्ची ईश्वराधना है।
9) अनीतिपूर्ण चतुरता नाश का कारण बनती है।
10) अनाचार बढता हैं कब, सदाचार चुप रहता है जब।
11) अनवरत अध्ययन ही व्यक्ति को ज्ञान का बोध कराता है।
12) अनुकूलता-प्रतिकूलता में राजी-नाराज होना साधक के लिये खास बाधक है। राग-द्वेष ही हमारे असली शत्रु है। राग ठन्डक है, द्वेष गरमी हैं, दोनो से ही खेती जल जाती है।
13) अनुकूलता-प्रतिकूलता विचलित करने के लिये नहीं आती, प्रत्युत अचल बनाने के लिये आती है।
14) अनुभव संसार से एकत्रित करें और उसे पचानेके लिये एकान्त में मनन करे।
15) अनुभवजन्य ज्ञान ही सत्य है।
16) अनुशासित रहने का अभ्यास ही भगवान की भक्ति है।
17) अन्त समय सुधारना हो तो प्रतिक्षण सुधारो।
18) अन्तःकरण की मूल स्थिति वह पृष्ठभूमि हैं, जिसको सही बनाकर ही कोई उपासना फलवती हो सकती हैं। उपासना बीज बोना और अन्तःभूमि की परिष्कृति, जमीन ठीक करना हैं। इन दिनों लोग यही भूल करते हैं, वे उपासना विधानों और कर्मकाण्डो को ही सब कुछ समझ लेते हैं और अपनी मनोभूमि परिष्कृत करने की ओर ध्यान नहीं देते।
19) अन्तःकरण की पवित्रता दुगुर्णो को त्यागने से होती है।
20) अन्तःकरण की सुन्दरता साधना से बढती है।
21) अन्तःकरण की आवाज सुनो और उसका अनुसरण करों।
22) अन्तःकरण को कषाय-कल्मषों की भयानक व्याधियों से साधना की औषधि ही मुक्त कर सकती है।
23) अन्तःकरण में ईश्वरीय प्रकाश जाग्रत करना ही मनुष्य जीवन का ध्येय है।
24) अन्तःकरण ही बाहर की स्थिति को परिवर्तित करता है।

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